०८/१०/२०१९ (३ से ६ की शाम )
कल की चाय तेरे साथ निराली थी
उसमे किसी की बातें बहुत सारी थी
कोई अनजाना सा दिल को छूने लगा था
जैसे के मुझे कोई मोहने लगा था
तक़दीर लिख बैठी थी उसके मुस्कान को देखके
सायद मुझे बेइन्तेहाह प्यार होने लगा था
जस्ट फ्रेंड का टैग लगाके खुदको समझा रही थी
उसकी चाहत मै ना चाहते खींची चली जा रही थी
समझा रही थी खुदको की वो अपना नहीं है
मेरी ही सोच मुझे फिर से तड़पा रही थी
एक कप की चाय मुझे उसके पास ले जा रही थी
जैसे कोई अपना साथी था वैसे बुला रही थी
एक कप चाय सिर्फ मुझे उस आँशु मै बहा रही थी
जो कभी मेरा ना होने वाला था उसके लिए वो सपने सज़ा रही थी
वो पागल सिर्फ उसे दिल ही दिल मै चाह रही थी
अपने शब्दो से एक और नई कविता बना रही थी।
पीहू।
दिल की बात
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