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Showing posts from 2021

"बेटी"

बेटी के बिना अधूरी है ज़िंदगानी  फिर उसकी आँखों में क्यों बरसता है पानी, चाहके भी कोई न समझ सके उसकी जुबानी  इतनी निराली है बेटियों की कहानी।  कभी बनती सीता कभी सावित्री  कभी बनके माँ सबको सहेजती , कभी रोती है आँखे छुपाके  पर खुलके जीती है ज़िंदगानी बनाके।  उसकी जिंदगी सिमट सी गयी है चार दी…

"माँ"

ममता का चादर ओढ़ के तुम आये हो जन्नत से माँ , दिल के बंधन को जोड़ के हमें बुलाये हो माँ।  हम तेरे दासी है क्यों की तू हमारी जन्नत है , हमें तो तेरी चरणों के धूल बनना है माँ।  अब चाहत है मरने के पहले भी देखूँ तुझे मै , दिल सिमट सा जाता है तेरी आँखों में झाँख के माँ।  बस यूह ही चाहना हमें अपन…

"समाजिक वर्ग"

हम एक ऐसे समाज से जुड़े है जिसमे भेद भाव ज्यादा है। छोटी सी उम्र मै किसी को समझना बहुत मुश्किल भरा रहा जैसे जैसे उम्र और जगह बदली वेसे वेसे नए लोग और उनकी नई सोच से मेरी मुलाकात होती रही। मैं इतनी तजुर्बे वाली नही हु पर जितना देखा और सुना है इससे यही पता चला है आज की जीवनशैली प्यार , इज्जत…