उसके दिए हर एक ज़ख़्म के निशाँ मेरे दिल और दिमाग मै है
ना चाहके भूल पाती हु न उस दर्द से दूर जा पाती हु
बस खुदको उसी डर मै जीने की राह दिखाती हु
याद जब भी याद आते है वो पल
सच कहु तो सहम जाती हु
आधी रातो मै सिर्फ मौत को पुकारती हु
सह नहीं सकती और मै वो मानसिक दर्द जो तूने मुझे दिन रात दिए थे
कभी ज़हर कभी प्रसाद दिए थे
२ माह काटे थे जिंदगी और मौत के बिच
बिना कहे आधी रात को निकाल दिए थे
आज भी डरती हु हर रातो मै
डरती हु तेरी हर बातो से
जो मुझे मरने पे मजबूर करती है
असफल होती हु आज भी खुदखुशी करने मै
जब पास मेरे मेरी माँ ना होती है
आज भी ताज़े है वो हर ज़ख्म जो तूने मुझे हर दिन रात दिए थे
हस्ती हुई आँखों मै सिर्फ बरसात दिए थे।
पीहू।
दिल की बात
Comments
Post a Comment