दलवाड़े की स्वाद छा गई
बारिश मै तू लाता था
अपनी पीहू के संग तू खाता था
शायद मौसम का मज़ा था
या बारिश का खुमार था
दलवाड़े के साथ तू मिर्ची बहुत खिलाता था
आग सी लग जाती थी मुँह मै तो तू चोरी से बोतल थमाता था
और प्यार से सिर्फ दो लफ्ज़ कहता था "धीरे खाया कर"
वर्ण तेरी साँसे रुक जाएगी
उस वक़्त यह साँसे रुकने का मतलब नहीं पता था
पर आज सब पता चल गया है
दलवाड़ा का स्वाद आज भी वही है
बस वो मिर्ची अब तीख़ी न रही
बोतल वही रहा पर हाथ बदल गए
लफ़्ज आज भी वही है पर बोलने वाला कोई नहीं
शायद यह बारिश नहीं मौसम का ख़ुमार है
जो वक़्त के साथ तुम भी बदल गए।
पीहू।
दिल की बात
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