बदुआ होती है उन बेटी की नसीब,
जिसके नसीब मैं मायके की रोटी लिखी होती है।
अपना घर होते हुए भी बेघर होती है बेटी,
जिनके नसीब मायके की रोटी होती है।
सबकी आंखें पढ़ लेती है वो मजबूर बेटी,
जिसके गोद मैं एक बेटी होती है,
बड़ी बदनसीब होती है वो बेटी,
जिनके नसीब मैं मायके की रोटी होती है।
भाई कहता...
कहती भाभी कितना दिन का कौर तोड़ती
न अपने घर जाती
न कही जाके मर जाती
न किसी का हाथ थामकर यह कही को चली जाती..,
यह सब सुनके सहम जाती है वो बेटी
उसके गोद मैं एक प्यारी बेटी होती है
जिसके नसीब मैं मायके की रोटी होती है।
आपने तो आपने हुए नही
बेगाने तो और सुनते है
मायके का डेरा तेरा नहीं
बस हर बात मैं तंज कस जाते है..,
सर पे जिसके छत नहीं
वो कहा इज्जत पाते है
बस हर दिन रात वो मौत को चाहते है..
बड़ी बदनसीब होती है वो बेटी
जिनके नसीब मैं मायके की रोटी होती।
बोझ जब बनने लगीं बेटी
तो वो सिर्फ आंसू बहाती है
कोस कोस के अपने जीवन को
अब न और जीना चाहती है
समय कम ..
और जिंदगी बड़ी
न मिला किनारा
न किसी का साथ सही
भरोसा अपनो पे करके वो बहुत पछताती है..,
प्रभु ने बनाई क्यूं बेटी
वो सोच सोच के मर भी न पाती है
बड़ी बदनसीब है वो बेटी
जो चैन से मर भी नही पाती है...
जिसके नसीब लिख जाए मायके की रोटी
वो अपना जीवन रो रो बिताती है..,
बड़ी बदनसीब है वो बेटी
जिनके नसीब मैं मायके की रोटी होती है।।
---दिल की बात---
_पूजा पांडे_
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